Poona Pact 1932: 1932 का पूरा समझौता, डॉ. अम्बेडकर और गांधीजी के बीच हुआ था, दलितों को प्रांतीय विधानसभाओं में अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों की जगह आरक्षित सीटें देता था।
Poona Pact 1932
Poona Pact 1932 का पूना समझौता भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण समझौता है, विशेष रूप से दलित वर्गों (अब दलित या अनुसूचित जाति) के अधिकारों और प्रतिनिधित्व के बारे में। यह समझौता सामाजिक न्याय की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम था और इसका भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर गहरा असर था। यह लेख पूरी संधि, पृष्ठभूमि, महत्वपूर्ण आंकड़े, शर्तों और इसके परिणामों को समझाता है।
Poona Pact Overview
तारीख और स्थान: पूना संधि का हस्ताक्षर 24 सितंबर 1932 को पुणे (अब पुणे) में हुआ था।
समझौते की शर्तें निम्न हैं: पूना समझौता कई महत्वपूर्ण शर्तों को शामिल करता था:
योग्य सीटें: दलितों को अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों के बजाय प्रांतीय विधानसभाओं में आरक्षित सीटें दी गईं। विभिन्न प्रांतों में 148 सीटें दी गईं।
संयुक्त चुनाव क्षेत्र: दलित सदस्यों को आरक्षित सीटें मिलेगी, लेकिन वे सामान्य निर्वाचन क्षेत्र में मतदान करेंगे। इससे हिंदू समाज का एक बड़ा हिस्सा बने रहते हुए भी उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हुआ।
प्रतिनिधित्व का विस्तार: सांप्रदायिक पुरस्कार में शुरू में प्रस्तावित की तुलना में अधिक सीटें आरक्षित की गईं, जिससे दलित वर्गों को बेहतर प्रतिनिधित्व मिला।
प्राथमिक विकल्प: दलितों ने पहले दस साल के लिए प्राथमिक चुनाव में चार उम्मीदवारों को चुना। ये उम्मीदवार एक बार फिर आम चुनाव में भाग लेंगे।
Poona Pact 1932 Background
ब्रिटिश भारत के शासन का संदर्भ: 20वीं सदी की शुरुआत में भारत ब्रिटिश औपनिवेशिक राज्य था। दलित वर्ग, जो जाति के आधार पर भारतीय समाज में गहराई से विभाजित था, गंभीर सामाजिक भेदभाव और बहिष्कार से पीड़ित था।
Poona Pact 1932 का सामाजिक पुरस्कार: ब्रिटिश प्रधान मंत्री रामसे मैकडोनाल्ड ने अगस्त 1932 में सांप्रदायिक पुरस्कार की घोषणा की, जो दलित वर्गों सहित भारत के विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समुदायों के लिए अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों की पेशकश करता था। इसका अर्थ था कि दलित लोग हिंदू समुदाय के अन्य हिस्सों से अलग अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे।
भारत के नेताओं की प्रतिक्रिया: महात्मा गांधी सहित कई भारतीय नेताओं ने दलित वर्गों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की कल्पना का विरोध किया था। उन्हें लगता था कि अलग निर्वाचन मंडल |
Poona Pact 1932 Key Figures
Dr. BR Ambedkar: डॉ. बी.आर. अम्बेडकर दलितों के एक प्रमुख नेता और उनके अधिकारों के दृढ़ समर्थक थे। उन्होंने अलग निर्वाचन क्षेत्रों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने और दलित वर्गों के अधिकारों की रक्षा के साधन के रूप में देखा।
गांधीजी: महात्मा गांधी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति, ने दलित वर्गों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों का कड़ा विरोध किया। उनका विचार था कि इससे भारतीय समाज को और अधिक विभाजित करेगा।
गांधीजी को जेल: 20 सितंबर 1932 को, गांधीजी ने सांप्रदायिक पुरस्कारों का विरोध करते हुए यरवदा सेंट्रल जेल, Poona Pact 1932 (अब पुणे) में कैद हो गए। भारतीय नेताओं में उपवास करने के उनके निर्णय ने एक ऐसा समाधान खोजने की तात्कालिकता की भावना पैदा की जो बड़े हिंदू समुदाय और दलित वर्गों को संतुष्ट कर सके।
Poona Pact 1932 Negotiations
समझौता करने का दबाव: हिंदू समुदाय और दलित वर्ग के नेताओं ने गांधी के उपवास से तुरंत चर्चा शुरू की। इसका लक्ष्य था एक ऐसा समझौता बनाना जो अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों को रोक सके और दलितों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिले।
कांग्रेस के नेताओं का कार्य: मदन मोहन मालवीय सहित प्रमुख कांग्रेस नेताओं ने गांधी और डॉ. अम्बेडकर के बीच बहस में मध्यस्थता की। आम सहमति उनके प्रयासों से मिली।
Poona Pact Impact
तुरंत प्रभाव: गांधीजी ने Poona Pact 1932 समझौते पर हस्ताक्षर करके अपना अनशन समाप्त कर दिया, जिससे उनके समर्थकों और देश को राहत मिली। सामाजिक सद्भाव और एकता की जीत इस समझौते से हुई।
राजनीतिक प्रतिष्ठान: Poona Pact 1932 पैक्ट ने दलितों को विधायी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण राजनीतिक आवाज दी। आरक्षित सीटों ने उनके अधिकारों और हितों की वकालत करने वाले प्रतिनिधियों को रखने की अनुमति दी।
सामाजिक पहलू: पूरा समझौता राजनीतिक था, लेकिन इसके गहरे सामाजिक परिणाम थे। इसने दलितों की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित किया और उनके उत्थान और मुख्यधारा के समाज में उनके एकीकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
Poona Pact Criticism and Controversies
अम्बेडकर का विरोध: डॉ. अम्बेडकर ने पूना संधि पर सहमति जताते हुए इसकी दीर्घकालीन प्रभावशीलता पर आपत्ति जताई थी। उन्हें लगता था कि अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों ने दलितों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने के लिए मजबूत सुरक्षा प्रदान की होगी।
निरंतर भेदभाव: दलित वर्गों को पूना संधि के बावजूद धन और सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। यह समझौता एक कदम आगे था, लेकिन जाति-आधारित उत्पीड़न की गंभीर समस्याओं को पूरी तरह से नहीं हल किया।
Poona Pact Legacy
भविष्य के नियमों का आधार: भविष्य की नीतियों को पूना पैक्ट ने दलित वर्गों की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को बेहतर बनाने का लक्ष्य रखा था। इसने भारतीय संविधान का निर्माण किया, जो सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के उपायों और विधायिकाओं में आरक्षित सीटों की व्यवस्था करता है।
सामाजिक न्याय का प्रतिनिधित्व: सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष और एक समावेशी समाज बनाने की कोशिश पूना पैक्ट से दिखाई देती हैं। इसे समानता और सामाजिक सुधार की दिशा में भारत की यात्रा में एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है।
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